________________ ( 166 ) अपनी शान्ति के लिये या देवपूजा अथवा यज्ञ के लिये जो प्राणी हिंसा करते हैं वह हिंसा उनको शीघ्र ही नर्क में लेजाने वाली होती है // 18 // देवपूजा, या मन्त्र अथवा औषध के लिये अथवा अन्य किसी भी कार्य के लिये की हुई हिंसा जीवों को नर्क में लेजा. ती है / / 27 // ___ जो पापी धर्म बुद्धि में हिंसा करते हैं वे जीवन की इच्छा से विषपीत हैं / / 26i ___ यह अहिंसा ही मुक्ति और स्वर्ग लक्ष्मी की दाता है यही हित करती है, और समस्त आपत्तियों का नाश करती है। // 33 // अकेली अहिंसा ही जीवों को जो सुख, कल्याण एवं अभ्युदय देती है, वह तप स्वाध्याय और यमनियमादि नहीं देख सकते / / 47 // ___ इतने स्पष्ट प्रमाणों से अहिंसामय धर्म ही श्रात्मा को शान्तिदाता सिद्ध होता है। इससे प्राणी हिंसा मय मूर्ति पूजा निरर्थक और अहितकार ही पाई जाती है। यदि आ. चार्य पं चतुरसेनजी शास्त्री के शब्दों में कहा जाय तो पा. खण्डी की जड़ अधिकांश में मूर्ति-पूजा ही है / इस मूर्ति पूजा के आधार से कितनी ही अंध श्रद्धा फैली हुई है और कई प्रकार की अंध श्रद्धाओं की यह जननी भी है। जितनी हत्या धर्म के नाम पर मूर्ति-पूजा द्वारा हुई और हो रही है उतनी अन्य किसी भी कारण से नहीं हुई व न होगी। इसी मूर्ति-पूजा के नाम पर होती हुई हिंसा को मिटाने के लिये श्रीर रामचन्द्र शर्मा को अपने बलिदान करने की बारबार