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________________ ( 183) (6) ज्ञाता धर्म कथा अ० 8 में भगवती मल्लि कुमारी ने चोक्खा परिव्राजिका को कहा कि जिस प्रकार रक्त में सना हुवा वस्त्र रक्त से धोने पर शुद्ध नहीं होता, उसी प्रकार हिंसा करने से धर्म नहीं हो सकता। . (7) प्रश्न व्याकरण के प्रथम सम्वर द्वार में स्वयं श्रीगणधर महाराजा ने दया को महिमा की है और साथ ही दयावानों की महिमा करते हुए दया के गुण निष्पन्न 60 नाम भी बताये हैं। उक्त प्रकरण में यहां तक लिखा गया है कि-श्री सर्वज्ञ प्रभु ने " समस्त जगत् के जीवों की दया अर्थात् रक्षा के लिए ही धर्म कहा है"। (c ) उत्तराध्ययन सूत्र अ०१८ में सगर चक्रवर्ती का दया से ही मोक्ष पाना बताया है, यथा मगरो वि सागरंतं, भरहं वासं नराहिवो। इसरियं केवलं हिच्चा, दयाए परिणिधुए // उक्त प्रमाणों से हमारे प्रेमी पाठक यह स्पष्ट समझ सके होंगे-कि जैनागमों में आत्मकल्याण की साधना के लिये दया को सर्व प्रधान और अत्यधिक महत्व का स्थान दिया गया है, किन्तु मूर्ति पूजा के लिए तो एक बिन्दु मात्र भी जगह नहीं है, . क्योंकि-यह दया की विरोधिनी और हिंसा जननी है। * अब इस दद्या की महिमा में कुछ प्रमाण मूर्ति पूजक ग्रन्थों के भी देखिये, जिन में कि ये धर्म के कार्यों में भी हिंसा करना बुरा कहते हैं (1) योगशास्त्र के प्रकाश 2 में श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य लिखते हैं।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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