________________ ३५-न्यायाधीश या अन्याय प्रर्वतक प्रश्न-जिस प्रकार न्यायाधीश नरहत्या करने वाले को गज्य नियमानुसार प्राणा दण्ड देता हुआ हत्यारा नहीं हो सकता उसी प्रकार मूर्ति पूजा में धर्म नियमानुसार होती हुई हिंसा हानि कारक नहीं हो सकती, फिर ऐसी शास्त्र सम्मत पूजा को क्यों उठाई जाती है? यह दृष्टान्त एक मूर्ति पूजक साधु ने मू० पृ० में होती हुई हिंसा से बचने को दिया था। उत्तर--आपका डाक्टरी से निष्फल होने पर न्यायाधीश के पासन पर बैठने की चेष्टा करना भी निष्फल ही है। यहां भी आपके लिये न्यायाधीश के बजाय अन्याय प्रर्वतक पद ही घटित होता है। सर्व प्रथम यह तर्क ही असंगत है क्योंकि राज्य नीति से धर्म नीति भिन्न है / राज्य नीति जीवन व्यवहार और सर्व साधारण में शांति की सुव्यवस्था स्थापित कर सांसा. रिक उन्नति की साधना के लिये द्रव्य क्षेत्रादि की अपेक्षा से