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________________ ३२-आवश्यक कृत्य और मूर्ति-पूजा प्रश्न-जिस प्रकार साधु श्राहार पानी करते हैं, बरसते हुए पानी में स्थंडिल जाते हैं, नदी उतरते हैं, पानी में बहती हुई साध्वी को निकालते हैं, ऐसे अनेकों कार्य जैसे हिंसा होते हुए किए जाते हैं, उसी प्रकार पूजन में यद्यपि हिंसा होती है, तथापि महान् लाभ होने से करणीय है, ऐसी लाभ दायक पूजा का आपके यहां निषेध क्यों किया जाता है? उत्तर-उक्त उदाहरणों से मूर्ति पूजा करणीय नहीं हो सकती, क्योंकि आहार पानी, स्थंडिल गमन श्रादि कार्य शरीर धारियों के लिये प्रावश्यक और अनिवार्य है, इस लि. ये यथाविधि यत्ना पूर्वक उक्त कार्य किये जाते हैं इसी प्रकार कभी नदी उतरना भी अनिवार्य हो तो उसे मी पाचारांग में बताई हुई विधि से उतर सकते हैं, अनाव. श्यकता से नदी उतरने की आज्ञा नहीं है, जैन मुनि यदि कोसों का चक्कर वाला भी रास्ता होगा तो उससे जाने का प्रयत्न करेंगे, किन्तु बिना खास आवश्यकता के नदी में नहीं उतरेंगे। पानी में बहती हुई सान्त्री को मी त्याग मार्ग की
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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