________________ (131 ) वनस्पत्यादि की हिंसा करने का कटु फल बना कर अपने भ्रमण भक्तों को उससे दूर रहने की प्राज्ञा दी है, स्वयं विजयानन्दजी ने भी जैनतत्वादर्श में इसी प्रश्न के उत्तर में प्रारम्भ में बताये अनुसार वनस्पत्यादि का तोड़ना जीव अदत्त ब. ताया है फिर उसी जीव अदत्त की अनुमोदना मुनि करे, यह भी कह डालना श्री विजयानन्दजी का स्ववचन विरोध रूप दूषण से दूषित नहीं है क्या? ऐसा जीव अदत्त और उसके अनुमोदन का जघन्य काम मुनि महोदय किस प्रकार करें ? यह समझ में नहीं पाता। - इसके सिवाय 'कित्तिय, वंदिय, महिया' इन तीनों शब्दों के लिये करण योगों की भिन्नता नहीं है, तीनों शब्द अपेक्षा रहित है, इनके लिये किसी के लिये एक करण और किसी के दो तीन करण या योग का कहना मिथ्या है। ये तीनों शब्द साधु और श्रावक को समान ही लागु होते हैं इनमें से दो शब्दों को छोड़ कर केवल एक महिया' शब्द के लिये पक्षपात वश कुतर्क करना यह कैसे सत्य हो सकता है ? यदि महिया शब्द से साधु स्वयं पुष्पों से पूजा नहीं करके दूसरे की अनुमोदना करे तो क्या त्रिकरण साधु त्यागी स्वयं तो हिंसा नहीं करे किन्तु दूसरे हिंसा करने वालों की अनुमोदना तथा हिसा कारी कार्य का अन्य को उपदेश कर सकते हैं क्या ? ____ हा! एक पंचमहाव्रतधारी साधु कहाने वाले इस प्रकार हिंसा की अनुमोदना करने का और हिंसा करने का उपदेश दें, ग्रन्थों में वैसा विधान करें, यह तो मूर्ति पूजकों काभारी पक्ष व्यामोह ही है, ऐसी विरुद्ध प्ररूपणा शुद्ध साधुमार्ग में तो नहीं चल सकती।