________________ ( 130) (2) महिया शब्द चतुर्विंशतिस्तव का है और स्तव तो साधु भी करते हैं, वह भी दिन में कम से कम दो बार तो अवश्य ही अब हमारे मूर्ति पूजक बन्धु यह बतावे कि क्या साधु भी पुष्प से पूजा करे ? अापके मान्य अर्थ से तो मू० पू० साधुओं को भी फूलों से पूजा करना चाहिये, फिर आपके साधु क्यों नहीं करते ? इससे तो यही फलित होता है कि आपका यह अर्थ व्यर्थ है तभी तो उसका पालन श्राप के साधु नहीं करते हैं। इस विषय में मूर्ति पूजक आचार्य विजयानन्दसूरिजी कहते हैं कि 'सामायिक में साधु तथा श्रावक पूर्वोक्त महिया शब्द से पुष्पादिक द्रव्यपूजा की अनुमोदना करते हैं / साधु को द्रव्य पूजा करने का निषेध है परन्तु उपदेश द्वारा द्रव्य पूजा करवाने का और उसकी अनुमोदना करने का त्याग नहीं है। (सम्यक्त्व शल्योद्धार पृ० 181 ) इनके इस प्रकार मनमाने विधान पर पाठक जरा ध्यान से विचार करें कि जो काम स्वयं साधु के लिये त्याज्य है, वह पाप कार्य खुद तो नहीं करे किन्तु दूसरों से करवावे, यह तीन करण तीन योग के त्याग का पालन करना है क्या? मुनि खुद तो हिंसा नहीं करे, झूठ नहीं बोले, चोरी नहीं करे, और दूसरों को हत्या करने झूठ बोलने चोरी करने की प्रा. ना दे ? यह सरासर अन्धेर खाता नहीं तो क्या है ? अरे स्वयं वीर पिता ने आचारांगादि आगमों में धर्म के लिये