________________ ( 122 ) एक ही मनुष्य अपने ही समान चार पांच रूप और भी देख कर आश्चर्य करने लग जाता है, यह सब दर्पण के कारण ऐसा दिखाई देता है. जब मनुष्य वृत दर्पण में है। ऐसी वि. त्रि दिखाई देती है तब देवकृत नमवसरण के उद्योत में और प्रभामण्डल के प्रकाश तथा तीसरा स्वयं प्रभु का ही ददा प्यमान सूर्य के समान नजावी मुखक.मल, इस प्रकार तीन प्रकार के उद्योत से प्रभु चतुमुख दिखाई दे तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? ___'त्रिप्टिशलाका पुरुष चर' में और जैन रामायण में लिखा है कि रावण अपने हार की नो मणियों की प्रभा के कारण दशानन (दश मुंह वाला) दिखाई देता था। गवर के मुंह का प्रतिबिंब हार की नव मारियों में पड़ने से देखने वालों को रावण दश मुख का दिखाई देता था। इसी प्रकार यदि प्रभामण्डलादि के प्रकाश के.कारण यदि प्रभु चतुर्मुख दिखाई दें तो इसमें कोई अचरज नहीं। किन्तु तीन दिशाओं में मूर्तिये रखने का कथन तो मूर्ति-पूजक महानुभावों का प्रमाण शून्य और मन कल्पित ही पाया जाता है।