________________ २२-परोक्ष वन्दन प्रश्न- अन्यत्र विचरते हुए या स्वर्गस्थ गुरु के ( उनकी अनुपस्थिति में ) श्राकृति को लक्ष्य कर वन्दन करते हो, तब वह प्राकृति, स्थापना-मूर्ति नहीं हुई क्या ? और इस प्रकार आप मूर्ति पूजक नहीं हुए क्या ? उत्तर-इस प्रकार साक्षात् का स्मरण कर की हुई वन्दना, स्तुति यह भाव निक्षेप में है, स्थापना में नहीं। क्योंकि जब अनुपस्थित गुरु का स्मरण किया जाता है तब हमारे नेत्रों के सामने हमें गुरुदेव साक्षात् भाव निक्षेप युक्त दिखाई देते हैं / यदि हम व्याख्यान देते हुए की कल्पना करें तो हमारे सामने वही सौम्य और शान्त महात्मा की प्राकृति उपदेश देते हुए दिखाई देती है, हम अपने को भूलकर भूत कालीन दृश्य का अनुभव करने लगते हैं, इस प्रकार यह परोक्ष चन्दन भाव निक्षेप में है, स्थापना में नहीं / स्थापना में तो तब हो कि-जब हम उनकी मूर्ति चित्र या अन्य किसी वस्तु में स्थापना करके वन्दनादि करते हों तब तो श्राप हमें मूर्तिपूजक कह सकते हैं. किन्तु जब हम इस प्रकार की मूर्खता से दूर हैं तब आपका स्थापना वन्दन किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं हो सकता। अतएव आपको अपनी श्रद्धा शुद्ध करनी चाहिए। 4