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________________ (86) पना पूज्य मानने का सिद्धान्त भी प्रमाण एवं युक्ति से बाधित सिद्ध होता है। यहां कितने ही अनभिज्ञ बन्धु यह प्रश्न का बैठते हैं कि-'जब स्त्री पतिचित्र से मिलन सुख नहीं पा सकती तो केवल पति, पति इस प्रकार नामस्मरण करने से ही क्या सुख पा सकती है ? इससे तो नाम स्मारण भी अनुचित ठहरेगा ?" इस विषय में मैं इन भोले भाइयों से कहता हूं कि जिस प्रकार चित्र से लाभ नहीं उसी प्रकार मात्र वाणी द्वारा नामोच्चारण करने से भी नहीं / हां भाव द्वारा जो पति की मौजूदगी के समय की स्थिति घटना, एवं परस्पर इच्छित सुखानुभव का स्मरण करने पर वह स्त्री उस समय अपने विधवापन को भूलकर पूर्व संधवापन की स्थिति का अनुभव करने लगती है, उस समय उसके सामने भूत कालीन सुखानुभव की घटनाएं खड़ी हो जाती है, और उनका स्मरण कर वह अपने को उसी गये गुजरे जमाने में समझ कर क्षणिक प्रसन्नता प्राप्त करलेती है। इसीलिये तो ब्रह्मचारी को पूर्व के काम भोगों का स्मरण नहीं करने का आदेश देकर प्रभु ने छट्ठी बाड़ बनादी है / अतएव यह समझिये कि जो कुछ भी लाभ हानि है वह भाव निक्षेप से ही है स्थापना से नहीं / तिस पर भी जो चित्र से राग भाव होने का कह कर मू० पू० सिद्ध करना चाहते हो, तो उसका समाधान उन्नीसवें ( अगले) प्रश्न के उत्तर में देखिये and -. - 4
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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