________________ (83) स्कारादि करते हैं वे भी तीन वर्ष के लल्लु के छोटे भाई के समान ही बुद्धिमान ( ? ) है। हमारे सामने तो ऐसी दलीलें व्यर्थ है, यह युक्ति तो वहां देनी चाहिए कि जो स्थापना निक्षेप को ही नहीं मानकर ऐसे खिलौने को भी नहीं खाते हो, किन्तु आश्चर्य तो तब होता है कि-जब यह दलील मू० पू० श्राचार्य विजयलब्धिसूरिजी जैसे विद्वान् के कर कमलों से लिखी जाकर प्रकाश में आई हुई देखते हैं। नक्शे को नक्शा, चित्र को चित्र मानना तथा आवश्यकता पर देखने मात्र तक ही उसकी सीमा रखना यह स्थापना सत्य मानने की शुद्ध श्रद्धा है, नक्शे चित्र आदि को केवल कागज का टुकड़ा या पाषाण मय मूर्ति को पत्थर ही कहना ठीक नहीं, इसी प्रकारं नक्शे चित्र या मूर्ति के साथ साक्षात् की तरह बर्ताव कर लड़कपन दिखाना भी उचित नहीं। __ जम्बुद्वीप के नक्शे को और उसमें रहे हुए मेरू पर्वत को केवल कागज का टुकड़ा भी नहीं कहना, और न उसको जम्बुद्धीप या सुदर्शन पर्वत समझकर दौड़ मचाना, चढ़ाई करना। इसके विपरीत चित्र श्रादि के साथ साक्षात् का सा व्यवहार कर अपनी प्रनता जाहिर करना सुज्ञों का कार्य नहीं है। हम मूर्ति पूजक बंधुओं से ही पूछते हैं कि जिस प्रकार श्राप मूर्ति को साक्षात् रूप समझ के वन्दन पूजन करते हैं, उसी प्रकार क्या, कागज या मिट्टी की बनी हुई रोटी तथा शिल्पकारों द्वारा बनी हुई पाषाण की बादाम, मारक मादि