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________________ १६-नाम निक्षेप वन्दनीय क्यों ? प्रश्न--भाष निक्षेप को ही वन्दनीय मानकर अन्र निक्षेप को अवन्दनीय कहने वाले नाम स्मरण या नाम निक्षेप को वंदनीय सिद्ध करते हैं या नहीं? उत्तर--यह प्रश्न भी अज्ञानता से ओत प्रोत है, हा नाम निक्षेप को वन्दनीय मानते ही नहीं, यदि हम नाम निते को ही वन्दनीय मानते तो ऋषभ,नेमि, पार्श्व, महावीर प्राति नाम वाले मनुष्यों को जो कि तीर्थंकरों के नाम निक्षेप में है उनको वन्दना नमस्कार श्रादि करते, किन्तु गुणशून्य नाम निक्षेप को हम या कोई भी बुद्धिशाली मनुष्य या स्वयं मूर्ति पूजक ही वन्दनीय, पूजनीय नहीं मानते, ऐसी सूरत में गुण शून्य स्थापना निक्षेप को वन्दनीय पूजनीय मानने वाले कि प्रकार बुद्धिमान कहे जा सकते हैं। हम जो नाम लेकर वन्दना नमस्कार रूप क्रिया करते हैं, वह अनन्तशानी कर्म वृन्द के छेदक जगदुपकारी, शुक्लध्यान में मग्न ऐसे तीर्थकर प्रभु की तथा उनके गुणों की जब हम ऐसे विश्वपूज्य प्रभु का ध्यान करते हैं तब हमारी
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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