________________ प्रास्ताविक ___संस्कृत साहित्य ए मुख्यतया आध्यात्मिक संस्कृतिनी भाषा छे. तेना अध्ययन मां पा विशेषता रही छे. जैन वाङ्मय संस्कृत अने प्राकृत भाषामां संग्रहायेलुछे. ते शास्त्रो उपरथी गुजराती भाषामां पण पुष्कल साहित्य रचायु छे. मूल शास्त्रोना अध्ययन माटे व्याकरण काव्य साहित्य न्याय वगेरेनु अध्ययन थाय छे. तेमां जैन संस्कृतना अभ्यास माटे काव्योनु अध्ययन थाय छे. कलिकाल सर्वज्ञ पूज्य हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे रचेल अनेकार्थ संग्रहनी टीकानु संपादन करवानु थयुते कैरवाकरकौमुदी टोका तेप्रोश्रीना पट्टधर रत्न पूज्य महेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे रचेल छे. ते 800 वर्ष पहेलानी टीकामां सैंकड़ों शास्त्रोना उदाहरणो प्राप्यां छे. तेना प्राधार स्थानो शोधतां सैंकड़ो जैन जैनेतर ग्रन्थो जोवाना थया तेथी जणायु के महाकाव्यो मूल अने पद्योनो अकारादि सार्थ संपादित थाय तो अभ्यास पण उंडाणथी थाय अने आधार स्थानो सुलभ बने. . ___ उपर छल्लो अभ्यास करनारा माटे आमां चंचुपात थवो कठीन छे. बेचार ग्रन्थोनुआ रीते संशोधन करनारे घणु उपलब्ध बनी जाय एथी जन जैनेत्तर काव्योतुं संपादन पा कार्यो माटे जरूरी छे. पा काव्यषट्कमां रघुवंश, कुमारसंभव, किरातार्जुनीय, शिशुपालवध, नैषधीयचरित अने मेघदूतनो समावेश थयो छे. ते ग्रन्थोनी अकारादि सूची संयुक्त रीते करी छे. तेमां पद्यनु आद्य पद काव्यनाम, सर्ग अंक, पद्य अंक, अने पृष्ठ अंक प्रापेला छे. जेथी