________________ इनके रचयिता विक्रम वर्ष के 170 वर्ष पहलेही प्रायः हुये थे, इसमें संक्षेप से जैनदशर्न का रहस्य समझाया गया है। ग्रन्थकार बडेही संग्राहक थे यह वात इस ग्रन्थ के पाठक स्वयं जान लेते हैं और बडे भारी विद्वान् और आप्तप्रवर थे. सूत्ररूप से ग्रन्थ दश अध्याय में है और साथ स्वोपज्ञभाष्य भी दिया गया है, इसका भाषान्तर रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला के अध्यक्षों ने श्री महामहोपाध्याय दामोदर शास्त्री के शिष्य ठाकुर प्रसाद व्याकरणाचार्यजी से करवाया है। किन्तु भाषान्तरकार ने केवल दक्षिणाप्राप्ति पर लक्ष्य रक्खा है किन्तु पाठक लोग इस भाषान्तर से ग्रन्थ का तात्पर्य कैसे समझेंगे इसका ख्याल बहुत कम किया है और भाषान्तर में स्खलना भी बहुत है. माघशुक्ल-द्वितीया. सच्चिदानंद भिक्षु. स्थल-शान्तिशिखर.