________________ लेखमुखपाठकगण ! इस लेख में क्या विषय है यह समाचार तो ग्रन्थ के नाम से ही ज्ञेय है. इस लेख के लिखने का प्रयोजन और कुछ नहीं है किन्तु हमारे काशी के विद्वान् आस्तिक्यपूर्ण जैनदर्शन को नास्तिक कह कर उसके ग्रन्थ विनाही पढ़े उसका खण्डन लिखने को उद्यत हो जाते हैं, अब से ऐसा न होने पावे और सर्व विद्वान् महाशय आंख खोल के जैनदर्शन को पढकर उसका खण्डन करें यह ही लेख निदान है। महाशय ! यदि आप उभय लोक में सुख की इच्छा करते हों तो वह तब तक परिपूर्ण नहीं हो सकती जब तक आप सत्य धर्म को प्राप्त न करें, में अपना अनुभव पक्षपात राहित्य से आपकी समक्ष दिखलाता हूं कि यदि जगत में प्राचीन, वीतराग प्रदर्शित, परस्पर अबाधित, शान्तिप्रिय और आधुनिक विज्ञान से भी सिद्ध कोई धर्म है तो केवल जैन धर्म ही है इस में कोई भी संदेह नहीं है, इस जैन धर्म के विषय में प्राचीन ग्रन्थकारों की लेखनी इतनी निर्दोष और अगर्व है कि ग्रन्थ को पढतेही ग्रन्थकार का आतत्व स्पष्टही झलकता है जिस प्राचीन जैन ग्रन्थों से मुझे बहुत उपकार हुआ है, उपकार ही क्या ?, किन्तु, भवसागर से मेरा उद्धार ही होगया है, उस प्रन्यों का और उसके निर्दोष सर्वज्ञ जैनश्वेताम्बराचार्य प्रणेताओं का नम्र अनुचर होला हुआ मैं उसको अनन्त धन्यवाद देता हूं और इस छोटे से लेख में प्रमाणभूत दिये गये जैन ग्रन्थों का पाठक महाशयों को कुछ परिचय भी देता हूं। लेखपृष्ठ- ग्रन्थनाम- कर्ता 7 प्रमाणमीमांसा- कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रमूरि. यह एक अपूर्वतर्क ग्रन्थ है. ग्रन्थकार ने इसको पांच अध्याय से संपूर्ण