________________ ( 15 ) ____ऽऽयत्यां शुभं विदधदेष न पक्षपातः // 61 // बड़ी पूजा से खल-दुष्ट मत्त होता है, और बड़ा दण्ड करनेसे अलीन अच्छा मनुष्य उद्विग्न होता है और ऐसा करनेसे लोकयात्रा व्यवस्थिति में रह नहीं सकती, और उचित पूजा, दण्ड करनेसे यह पक्षपात नहीं कहलाता है। अब शास्त्रीजीने जो उपरोक्त पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष सृष्टिकर्ता के बारेमे दिखलाये हैं, वे सब मिथ्या प्रलाप है और ईश्वरको कलहित बनानेके उपाय है, देखिये-वीतराग ईश्वर इस जगतको किस लिये बनावेगा !. तथाहि- शशभृन्मौलेस्त्रैलोक्यघटने भवेत् / यथारुचिप्रवृत्तिः किम् ?, कर्मतन्त्रतयाऽथवा ? // 1 // धर्माद्यर्थमथोद्दिश्य ?, यद्वा क्रीडाकुतूहलात् / निग्रहाऽनुग्रहाय वा ? सुखस्योत्पत्तयेऽथवा // 2 // यद्वा दुःखविनोदार्थम् ?, प्रत्यवायक्षयाय वा / भविष्यत्सत्यवायस्य परीहारकृते किमु // 3 // अपारकरुणापूरात् किं वा ?, किंवा स्वभावतः / / एकादशैवमेते स्युः प्रकाराः परदुस्सहाः // 4 // अर्थात् क्या महादेवजी जो सृष्टि बनाते हैं सो अपनी यथारुचि बनाते हैं / या कर्म से परतन्त्र होकर बनाते हैं / वा अपने