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________________ ट्रस्टियों के कर्तव्य 1) प्रत्येक ट्रस्टी ने आपमति, बहुमति और सर्वानुमति के आग्रही नहीं बनना चाहिए किन्तु शास्त्रमति के ही आग्रही रहना जरुरी है। मन्दिरादि के तथा वहीवटादि के कार्य शास्त्र के आधार से श्री अरिहन्त परमात्मा की आज्ञा अनुसार करने के लिए कालजी रखनी चाहिये। 2) अपने बोले चढ़ावे की या स्वयं ने टीपादि में लिखाकर देने की निश्चित की हुई देवद्रव्यादि की रकम शीघ्रतया संघ की पेढ़ी में भरपाई करनी चाहिए और लोगों में भी जो देवद्रव्यादि की रकम पड़ी होवे तो उसकी स्वयं या मुनीम के द्वारा उघराणी करके वसूल करनी चाहिए। हर हमेशा मन्दिर में देवाधिदेव अरिहन्त परमात्मा के दर्शन पूजन करने चाहिए और मन्दिर की सार-संभाल रख के होती हुई आशातनाओं को दूर करने, करवाने का प्रयास करना चाहिए। इसी तरह उपाश्रयादि धर्मस्थानों मे भी रोज जाना चाहिये और उसकी साफ-सफाई वगेरा करवाने का ध्यान रखना चाहिये। उपाश्रय में गुरूमहाराज विराजमान होवे तो प्रतिदिन उनको वन्दन करने जाना चाहिये तथा उनका प्रवचन सुनना चाहिये। __उनके पास स्वयं जिस रीत से वहीवट करते हो उसकी
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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