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________________ 48 साधारण सम्बन्धि तु संघानुमत्या यदि व्यापार्यते तदाऽपि लोकव्यवहाररीत्या भाटकमप्यते न तुन्यूनम् / / साधारण के दुकान मकानादि में संघ की अनुमति से रह सकते है फीर भी उसका किराया लोग व्यवहार में जो होवे उस मुताबिक देना चाहिये कम देवे तो न चले। कम भाड़ा देने वाला पाप का भागी बनता है। गृहचैत्यनैवेद्यादि तु देवगृहे मोच्यम् / श्राद्ध विधि ग्रन्थकार कहते है कि घर मंदिर में नैवेद्य चांवल सोपारी नारियल वगेरे जो कुछ आवे वह संघ के मन्दिर में दे देना चाहिए। कितनेक जगह पर घर मन्दिर में प्रभुभक्ति निमित से इकठे हुए देव द्रव्य का व्यय घर मन्दिर के जिर्णोद्धार में रंगरोगानादि करने में तथा पूजा के लिए केसर सुखडादि की व्यवस्था करने में करते है वह किसी रीत से युक्त नहीं है। व्यक्ति का मन्दिर कहलावे और उसका निभावादि देव द्रव्य में से करे यह कैसे ठिक है। व्यक्ति के मन्दिर में व्यक्ति ने स्वयं ही अपने धन से निभावादि की व्यवस्था करनी चाहिये। अपने मन्दिर में आयी सब आवक संघ के मन्दिर में देनी यह ही श्राद्ध विधि आदि शास्त्र का विधान है।
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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