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________________ .. 50 . . . जानकारी देनी चहिये उसमें जो भुलचूक बतावे उसका सुधारा करना चाहिये। वहिवट करने की विधि के बताने वाले शास्त्र अवसर पर सुनने चाहिये। प्रत्येक ट्रस्टी का फर्ज है कि ट्रस्टी बनने पर मन्दिर में दर्शन पूजन करने वाले की संख्या में वृद्धि होवे तथा उपाश्रय में सामायिकादि की आराधना करने वाले की संख्या बढ़े और गुरूमहाराज के व्याख्यानादि में ज्यादा लोग उपस्थित होवे ऐसे प्रयत्न करते रहना चाहिये। जैन शासन के प्रभावना के महोत्सवादि कार्यों में प्रत्येक ट्रस्टी ने सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिये। आजकल कई जगह पर ट्रस्टी वर्ग ट्रस्टी बनने के बाद ऐसे निष्क्रिय बन जाते हैं कि महोत्सवादि शासन प्रभावना के प्रसंगो की बात तो बाजू में रखो लेकिन उनकी आवश्यक कार्यो के लिये ट्रस्टियों की बुलाई मीटिंग में भी उपस्थिती नहीं रहती। कोई भी कार्य में भाग नहीं लेते। यह अत्यन्त ही अनुचित है संघ के प्रसंगोपस्थित कार्यों में भाग देकर भोग देने की वृत्ति न होवे तो ऐसे आदमी ने ट्रस्टी पद पर आरूढ ही नहीं होना चाहिये। प्रत्येक ट्रस्टी ने प्रत्येक शासन के कार्य में जिनागम-शास्त्र का अनुसरण करके संप को जारी रखना चाहिये। और जैन संघ में विखवाद खडे न हो उसकी कालजी रखनी चाहिए।
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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