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________________ 35 अतः ये व्यापार धन्धे महापाप के कारण बनते हैं ऐसे धन्धे करने वाले को देव द्रव्यादि की वृद्धि करने के लिए ब्याजादि से देव द्रव्यादि द्रव्य देना ये जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा के विरुद्ध है। इस कारण द्रव्य सप्ततिका ग्रन्थ की टीका में कहा है कि कर्मादानादिकुव्यापारवर्ड सद्व्यवहारादिविधिनैव तवृद्धिः कार्यां। कर्मांदानादि के कुव्यापार को छोड़ सद्व्यवहारादि की विधि से ही देव द्रव्यादि की वृद्धि करनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि न तो अपने कर्मादानादि के व्यापार में देव द्रव्यादि लगाना या तो नं दुसरे कर्मादानादि के व्यापार करनेवाले को ब्याजादि से देना ऐसा शास्त्र-कार का कहना है शास्त्र विरुद्ध यदि देव द्रव्यादि की वृद्धि करने का लोभ रखोगे तो संसार बढ़ जायेगा,. अनन्तकाल तक चोरासी के चक्कर में घुमना पड़ेगा। कई नरकादि दुर्गतियों में भयंकर दुःख भोगने पड़ेंगे। द्रव्य सप्तत्ति ग्रन्थ में नीचे के श्लोक में पालन करने योग्य तीन बातें बताई हैं (1) देव द्रव्यादि का स्वयं भक्षण न करना, (2) भक्षण करने वाले दुसरों की उपेक्षा नहीं करना, (3) देव द्रव्यादि का दुर्वहीवट नहीं करना। भक्खेइ जो उविक्खेइ जिणदव्वं तु सावओ /
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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