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________________ 36 पन्नाहीणो भवे जोउ लिप्पइ पावकम्मणा।। / / देव द्रव्यादि का जो स्वयं भक्षण करता है। देव द्रव्यादि का भक्षण करने वाले की उपेक्षा करता है तथा मंदमति से दुर्वहीवट करता है वह पाप कर्म से लेपाता है। . देव द्रव्यादि का भक्षण करना शास्त्र में महा पापबन्ध का कारण बताया है। चेइयदव्वं साहारणं च, जो दुहइ मोहियमइओ / धम्मं च सो न याणेइ अहवा बद्धाउ उ नरए / जो मोहग्रस्त मतिवाला श्रावक देव द्रव्य ज्ञान द्रव्य साधारण द्रव्यं का स्वयं उपभोग करता है। चोर लेता है। वह धर्म को बिल्कुल नहीं जानता अथवा तो उसने नरक का आयुष्य बांध लिया है। आयाणं जो भंजइ पडिवन्नधणं न देइ देवस्स / गरहंतं चोविक्खइ सो विहु परिभमइ संसारे / देव द्रव्य से बनाए मकान में या दुकान में भाड़े से भी रहना उचित नहीं है लेकिन मंदिरादि के निभाव के लिये / मकान दुकान वगेरे किसी आदमी की तरफ से भेंट आये होवे उसमें भाड़े से श्रावक वगेरे रहे और भाड़ा कम देवे, न देवे कोई देता हो उसको मना करे।
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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