________________ 34 न लगाकर उपाश्रय धर्मशाला भोजनशाला संस्ते भाड़े की चाल बिल्डिंग बनवाने आदि कार्य में लगा देते हैं जो अत्यंत हैं शास्त्र विरुद्ध है और गाढ़ पाप बन्ध का कारण है। देव द्रव्यादि को यदि वृद्धि करनी है तो जिनाज्ञा से खिलाफ होकर मत करो। द्रव्य सप्ततिका ग्रन्थ में कहा है कि - जिणवरआणारहियं वद्धारंता वि केवि जिणदव्वम् / बुडूति भवसमुद्दे मुढा मोहेण अन्नाणी // जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा को छोड़कर जो देवाति द्रव्य की वृद्धि करता है वह मोह से मूढ है अज्ञानी है और वह संसार सागर में बुड़ता है। शास्त्र में 15 कर्मादान के व्यापार धन्धे बताये हैं जैसे अंगार कर्म-लकड़ों को जला कर कोलसे बनाने का धन्धा। रस वाणिज्य-तेल घी गुड़ादि के व्यापार करना। दन्त वाणिज्य-हाथी आदि पंचेन्द्रिय प्राणियों को मार कर उनके दांतादि को बेचने का धन्धा करना। खेती वाड़ी करना इत्यादि। कर्मादान के धन्धे में एकेन्द्रिय से लगाकर पंचेन्द्रिय तक के प्राणियों की घोर हिंसादि का आरंभ समारंभ होता है