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________________ 33 वास्तव में आज के काल में देव द्रव्यादि द्रव्य की वृद्धि करके बढ़ाए जाना और संग्रह करना ये किसी भी तरह से ठीक नहीं है क्योंकि वर्तमान की सरकार और कायदे ऐसे विचित्र कोटी के है कि मिलकत कब हाथ में से चली जावे यह कुछ भी नहीं कह सकते। अतः जहां जहां मंदिरों के जीर्णोद्धार वगेरे में जरूरत लगे वहां वहां देव द्रव्य का सद्व्यय कर लेना चाहिए। अपने गांव में मंदिर के अन्दर उपयोग करने की आवश्यकता लगे तो उसमें देव द्रव्य का पैसा लगा देना जरूरी है। अपने गांव के मंदिर में आवश्यकता न होवे तो अन्य गांवों के मंदिर तथा तीर्थ स्थलों के मंदिर के जीर्णोद्धार या नूतन निर्माण में देने की उदारता बतानी चाहिए। लेकिन आज तो ज्यादातर ट्रस्टी वर्ग इतनी क्षुद्रवृत्ति के है कि वे न तो देव द्रव्य का उपयोग अपने गांव के मंदिर के जरूरी काम में करते और न तो अन्य गांवों के मंदिर या तीर्थ स्थलों में जीर्णोद्धारादि के कार्य में उपयोग करते। केवल देव द्रव्य का संग्रह कर उसके उपर अपना अधिकार जमाए रखते हैं इस तरह करने से ट्रस्टी वर्ग घोर पाप का बन्ध करते हैं ज्ञानी भगवन्त कहते हैं कि उनके जनम जनम बिगड़ जाएंगे। नरकादि दुर्गति में असह्य यातनाए भोगनी पड़ेगी। धन सम्पत्ति रगड़े झगड़े का मूल है। ट्रस्ट में धन सम्पत्ति ज्यादा प्रमाण में जमा हो जाती है तब ट्रस्टी वर्ग परस्पर झगड़ते हैं अथवा संग्रहित देव द्रव्य को मंदिरादि में
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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