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________________ (8) 8 केटलाएक ग्रंथोमां कयुं छे के, जेणे देवद्रव्यर्नु भक्षण कर्यु होय अथवा जेनी पासे देवद्रव्य लेणुं रघु होय तेनी पासेथी हरेक प्रकारे वसुल करवं, पण जो ते शख्सनी द्रव्य आपवानी शक्ति न होय अने ते संघ पासे देवाथी छुटो थवा आजीजी करतो होय तो श्रीसंघे तेनी योग्यता जोइने छुटको करवो अथवा तो पुन्यवंत श्रावके पोताना पदरथी रुपीया भरी खातुं चुकतुं कराव, परंतु जे शख्स छती शक्तिए बदद्यानतथी आपतो न होय तो तेना घरनुं पाणी पीयूँ ते पण श्रावकने कल्पतुं नथी, एटलुंज नहीं परंतु तेने पूरती शिक्षाए पहोंचाडी बीजाओ तेवी बदद्यानत करतां आंचको खाय तेम करवू जोइए. वळी देवद्रव्यमां दुषित थयेल शख्स आवरुवान अथवा धनाढ्य होय अने तेनी सामा पडी शकवानी शक्ति न होय अने तेने घरे दाक्षिणताए करीने कदी जमवू पडतुं होय तो ते जमवानी किंमत श्रावके देरासरना भंडारमा नाखवी, परंतु फोगट जमवू नहीं. . 9 श्रीचंदकेवळीना चरित्रमा कयुं छे के, कोइ गामना घणा श्रावकोए देवद्रव्य भक्षण करेलु तेथी ते गामनी स्थिति घणीज बगडेली, ते जोइ श्रीचंदकुंवर ते गामना श्रावकोने सारी रीते उपदेश दइ देवद्रव्यना दोषयी मुक्त थवा समजावी ते गामनुं पाणी पण पीधा शिवाय चाल्या गया. 10 केटलाएक पुन्यवंत श्रावको उजमणां करी हजारो रुपीया खरची चंदरवा, पुंठीयां, तोरण, रुमाल, पाठी, सोना रुपा
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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