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________________ (7) हुकमपणुं धरावी, व्यवस्था करवानुं काम पोते राखे तो ते कामनो वहीवट पोतानी सारी स्थिति होय अने द्यानत पाक रहे त्यां सुधी तथा पोतानो कुटुंब परिवार धर्मीष्ट होय त्यां सुधी जुज काळ सारी रीते चाले पण दैव योगथी पोतानी अथवा पोताना कुटुंबनी स्थिति वगाडवा मांडे त्यारे " भुखी कुतरी भोटीलांने खाय" ए कहेवत प्रमाणे पोतानी आबरु राखवाना तथा द्रव्यवान रहेवाना हेतुथी परमेश्वरनी, तथा आगामी भवनी के पापनी बीक न गणतां ते द्रव्यनो उपभोग लाचारीथी के खुशीथी करे छे, अने पछी ते वात ढांकवा अनेक प्रकारनां कालां घोळां करवा पडे छे, तो पण छेवटे ते ढांक्युं रहेतुं नथी, तेथी आ भवमां आवरुनी हानी थाय छे, कोइ सत्ताधारी सामा पड्या होय छे तो भक्षण करेलं द्रव्य ओकवू पडे छ अने आवता भवमां संसारमा रझळवानुं अंगीकार करवु पडे छे, तेमज तेनी पाछळ तेना नातीला जातीला कुटुंब परिवार तथा महोवतवाळाओने शरमावु पडे छे अने नीचाजोj थाय छे. आ उपरथी देवद्रव्यनी संभाळ घणीज सावचेतिथी पोताने डाघ न लागे तेवी रीते करवी जोइए. पण डाघ लागवाना भयथी संभाळज न करवी एवो विचार कोइए पोताना हृदयमां धारण करवो न जोइए. कारण के देवद्रव्यनी संभाळ करवानुं कार्य श्रावकने माटेज छे. तेमज उवेखी मूकवाथी श्रावकने प्रायश्चित्त पण कहेलुं छे. आ बावत आगळ उपर वधारें लखवामां आवशे.
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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