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________________ |बात कह दी। ___ गुरु महाराज ने कहा "शुभंकर ! यह आपने ठीक नहीं किया / तुमने देवद्रव्य के भक्षण का महान पाप किया है। सेठ ने कहा - हां गुरुजी ! उसके पीछे मेरे को भी कल बहुत धन की हानि हुई है। गुरु ने कहा - तेरे तो बाह्य धन की हानि हुई और इस मुनि को अभ्यन्तर संयम धन की हानि हुई है। हे शुभंकर ! इस पाप से बचना हो तो तेरे पास जो धन है उसका व्यय करके एक जिनमन्दिर बना देना चाहिये। सेठ ने पाप से बचने के लिए एक मन्दिर अपने सारे धन से बनवाया / साधु के पेट की जुलाब की औषधि देकर शुद्धि की तथा पातरे को गोबर और राख के लेप लगाकर तीन दिन धूप में रखकर और उसके बाद शुध्द जल से साफ करके शुद्धि की। मुनि महात्मा ने भी अपने किये अतिचार - पाप का प्रायश्वित कर लिया / SREF
SR No.004475
Book TitleSavdhan Devdravya Vyavastha Margadarshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherKumar Agency
Publication Year1994
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size3 MB
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