SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त पव रहे। सुबह भी प्रतिक्रमण नहीं किया | गुरु महाराज ने विचार किया। "यह क्या हुआ ? यह मुनि तो महान् आराधक है। साधु-जीवन की समस्त क्रियाएं प्रतिदिन अप्रमत्त भाव से करता था | आज ऐसा क्यों ? मुझे लगता है की इसने अवश्यमेव अशुध्द आहार का भोजन किया है। गुरु महाराज यह विचार कर रहे थे उस वक्त सुबह में शुभंकर सेठ गुरु भगवन्त को वन्दन करने आये। सेठ ने देखा मुनि महात्मा अभी तक सोये हुए हैं। गुरु को इसका कारण पूछा | गुरु ने कहा “यह मुनि गोचरी करके सोये हैं। उठाने पर भी उठे नही / मुझे लगता है की कल इसमें कोई अशुध्द आहार का भोजन किया होगा। यह सुनकर सेठ ने कहा कि कल तो मैंने ही गोचरी बेहेराई है। गुरुने पूछा, शुभंकर सेठ ! आपको तो मालूम ही होगा कि आपने बहोराया हुआ आहार शुद्ध और मुनि को खप में आवे वैसा ही था न ? शुभंकर सेठ ने सरल भाव से बिना छुपाये मन्दिर में से बदलकर लाए चांवल से बनाई खीर की 25 =
SR No.004475
Book TitleSavdhan Devdravya Vyavastha Margadarshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherKumar Agency
Publication Year1994
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy