________________ सेठ मेरे से भी बहोत भाग्यवान हैं कि वे ऐसा स्वादिष्ट और सुगन्धित भोजन प्रतिदिन करते हैं। मैं तो साधु रहा, मुझे ऐसा भोजनसदा कहाँ से मिले ? लेकिन आज मेरे भाग्य के व्दार खुल गये हैं। आज तो स्वादिष्ट और सुगन्धित खीर खाने को मिली है। ज्यों ज्यों उपाश्रय तरफ मुनि आगे बढ़ रहे हैं, त्यो त्यो मुनि की विचारधारा भी दुर्ध्यान तरफ आगे बढ़ती जाती है। अन्त में तो यहाँ तक निर्णय कर लिया कि "यह खीर गुरु को बताउंगा तोसबवेखा जायेंगे। इसलिए गुरुजी को बताये बिना उनकोखबर न पडे इस तरह एकान्त में बैठ कर खीर खा लुंगा।" उपाश्रय में जाकर गुरु कोखबर न पडे इस तरह चुप के से खीर अकेले ने खा भी ली / खाते खाते भी खीर के ससाद की और शुभंकरसेठ के भाग्य की खूबखूब मनोमन प्रशंसा करने लगे ! “अ हा हा ! क्या मधुर-स्वाद ! देवों को भी ऐसी खीर खाने को मिलना मुश्किल है। मैंने तप करके फिजुल देहदमन किया"। मुनि खीर खा के शाम को सो गये / प्रतिक्रमण भी नहीं किया / गुरुने प्रेरणा की फिर भी वह सोते ही ORX