________________ चावलों से प्रभुभक्ति की / सेठने दिव्य चावल की ढगलियां मन्दिर के रंगमंडप में देखी / वे चावल अलौकिक थे तथा सुगन्ध से तन मन को तरबतर करने वाले थे | उन चावलों को देखकर शुभंकर सेठ के दाढ में पानी आ गया और सोचा कि यदि इन चावलों का भोजन किया जाय तो उसका स्वाद कई दिनों तक याद रह जायगा। “मंदिर में जिनेश्वर देव की भक्तिमें रखे चांवल तो ऐसे ही लिए नहीं जाते। अब क्या करना ?" अन्त में उसने रास्ता ढूंढ निकाला / अपने घर से सामान्य चावल लाकर दिव्य चापल के प्रमाण में अधिक रखकर उन चावलों का बदला किया / दिव्य चावल घर ले जाकर उनकी खीर बनाई। खीर की खुशबू चारों ओर फैल गई। उस समय मासोपवासी एक तपस्वी मुनि महात्मा का उसके घर में पदार्पण हुआ | सेठ ने मुनि महात्मा को खीर बहोराई। मुनि महात्मा खीर वहेर कर उपाश्रय तरफ जा रहे थे। रास्ते में पातरे को अच्छी तरह से ढंकने पर भी दिव्य खीर की खुशबू मुनि महात्मा के नाक तक पहुँच गई। तब मुनि ने न करने जैसे विचार किए। BOP