________________ निमित्त से इकठे हुए देवद्रव्य का व्यय घर मन्दिर के जीर्णोध्दार में रंग-रोगानादि करने में तथा पूजा के लिए केसर सुखडादि की व्यवस्था करने में करते हैं। वह किसी तरह से युक्त नहीं है। जिस व्यक्ति का मन्दिर कहलावे उसको ही निभावादि की व्यवस्था करनी चाहिये। अपने मन्दिर में आयी हुई सब आवक संघ के मन्दिर में दे देनी चाहिए। यही श्राद्ध विधि आदि शास्त्रों का फरमान है। ट्रस्टियों के कर्तव्य - (1) किसी भी ट्रस्टी को आपमति, बहुमति और सर्वानुमति के आग्रही नहीं बनना चाहिये / किन्तु शास्त्रमति के ही आग्रही रहना जरूरी है। मन्दिरादि के तथा वहीवटादि के कार्य शास्त्र के आधार से श्री अरिहन्त परमात्मा की आज्ञा अनुसार करने के लिए सावधानी रखनी चाहिये / (2) अपने बोले चढ़ावे की या स्वयं ने टीपादि में लिखाकर देने की निश्चित की हुई देवद्रव्यादि की