________________ __ ( 39 ) अट्ट य तब्भवसिद्धा, सेसा तम्मि उ भवे व तइए वा / सिज्झिस्संति सगासे, जिणाण पडिवनपवजा // 166 // अष्टौ च तद्भवसिद्धाः, शेषास्तस्मिन्नेव भवे तृतीये वा / सेत्स्यन्ति सकाशे, जिनानां प्रतिपन्नप्रव्रज्याः // 166 // पण दिवा जलकुसुमा-ण वुट्ठि वसुहार चेलउक्खेवो / दुंदुहिझुणी सुराणं, अहो सुदाणं ति घोसणया // 167 // पञ्चदिव्यानि जलकुसुमा-नां वृष्टिर्वसुघारा चेलोत्क्षेपः / दुन्दुभिध्वनिः सुराणा-महो ? सुदानं त्रिघोषणया // 167 // सड्दुवालसकोडी-सुवनबुट्ठी य होइ उक्कोसा। लक्खा सड्ढदुवालस, जहन्निया होइ वसुहारा // 168 // सार्द्धद्वादशकोटी-सुवर्णवृष्टिश्च भवत्युकृष्टा / लक्षाः सार्द्धद्वादश, जघन्यका भवति वसुधारा // 168 // बारट्ठ छमास तवो, गुरु आइममज्झचरिमतित्थेसु / तेसि बहुभिग्गहा द-बमाइ वीरंस्सिमे अहिआ // 169 // द्वादशाऽष्टषट्मासास्तपो-गुर्वादिममध्यचरमतीर्थेषु / तेषां बह्वभिग्रहा द्रव्या-दयो वीरस्येमेऽधिकाः // 169 / / अचियत्तुग्गहनिवसण, निचं वोस?कायमोणेणं / पाणीपत्तं गिहिवं-दणं अभिग्गहपणगमेअं // 170 // अप्रीतिमद्गृहनिवसनं, नित्यं व्युत्सृष्टकायमौनेन / पाणिपात्रंगृहिव-न्दनमभिग्रहपञ्चकमेतत् // 170 //