________________ ( 37 ) तथा वप्रगायां धर्मो-नीलगुहायाञ्च सुव्रतजिनेन्द्रः। - पार्श्वश्वाश्रमपदे, वीरजिनो ज्ञातखण्डे // 155 // शेषाः सहस्राम्रवने, निष्क्रान्ता अशोकतरुतले सर्वे / कृतपञ्चमुष्टिलोचा-ऋषभश्चतुर्मुष्टिकृतलोचः // 156 // सुमईसिसमल्ली-नेमीपासाण दिक्ख पुवण्हे / सेसाण पच्छिमण्हे, जायं च चउत्थमणनाणं // 157 // " सुमतिश्रेयांसमल्लि-नेमिपार्थानां दीक्षा पूर्वाह्ने / शेषाणां पश्चिमाह्ने, जातं च चतुर्थमनोज्ञानम् // 157 // सको अ लक्खमुलं, सुरसं ठवई सबजिणखंधे / वीरस्स परिसमहियं, सयावि सेसाण तस्स ठिई // 158 // शक्रश्च लक्षमूल्यं, सुरदूष्यं स्थापयति सर्वजिनस्कन्धे / वीरस्य वर्षमधिकं, सदापि शेषाणां तस्य स्थितिः // 158 / / उसहस्स य इक्खुरसो, सेसाणं पारणंमि परमन्नं / तं वरिसेणुसहस्स य, सेसजिणाणं तु बीअदिणे // 159 // ऋषभस्य चेक्षुरसः, शेषाणां पारणे परमान्नम् / तद्वर्षेणर्षभस्य च, शेषजिनानान्तु द्वित्तीयदिने // 159 // हत्थिणपुरं अउज्झा, सावत्थी तह अउज्झ विजयपुरं / बंभत्थलं च पाडलि-संडं तह पउमसंडं च // 160 // सेअपुरं रिट्ठपुरं, सिद्धत्थ महापुरं च धनकडं / तह वद्धमाण सोमण-समंदिरं चेव चक्कपुरं // 161 //