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________________ सयसहस्साण नारीण, पिट्टफाडेइ निग्धिणो / सत्तट्ठमासिए गम्भे, तप्फडते निकत्तइ // 965 // भक्खेइ जो उवेक्खेइ, जिणदव तु सावओ / पन्नाहीणो भवे जीवो, लिप्पो पावकम्मुणा // 966 // चेइअदव्वविणासे, रिसिघाए पवयणस्स उड्डाहे / संजइचउत्थभगे, मूलग्गी बोहिलाभस्स // 967 // पोसेइ सुहभावे, असुहाइ खवेइ नत्थि संदेहो / छिंदइ नरयतिरियगइ, पोसहविहि अप्पमत्तो य // 968 // भत्तिभरनिन्भरंगो, सुयधम्मत्थी तिकालमणुदियह / जो पज्जुवासइ जई, तं समणोवासगं बेति // 969 // पाएण होइ पीई, जीवाणं तुल्लपुण्ण-पावाण / एगसहावत्तणओ, तहेव फलहेउओ चेव // 970 / / भवगिहमज्झम्मि पमायजलणजलियम्मि मोहनिदाए / उठवइ जो सुयंत, सो तस्स जणो परमबंधू / / 971 / / सोच्चा ते जियलोए, जिणक्यण जे नरा न याणंति / सोच्चाण वि ते सोच्चा, जे णाऊण न वि करन्ति // 972 // जम्मं णाण दिक्खा, तित्थयराण महाणुभावाण / जत्थ य किर निव्वाण, आगाढं देसण होइ / / 973 / / नाणाइगुणसमग्गे, जो णिच्च पज्जुवासए साहू / सम्मत्तभूसणाई, तस्स गुणा होति रोगविहा / / 974 / / तित्थयराण भगवओ, पवयण-पावयणि-अइसइड्ढीण / अभिगमण-णमण-दसण, कित्तण-संपूयण थुणणा / / 975 / /
SR No.004473
Book TitlePaia Subhasiya Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyadarshanvijay
PublisherPadmavijay Ganivar Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages124
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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