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________________ सड्ढदुवालसकोडी सुवण्णवुट्ठी अ होइ उनकोसा / लक्खा सडूढदुवालस, जहण्णिा होइ वसुहारा // 888 // दो पंथेहिं न गम्मइ, दोमुह सूईई न सीवइ कंथा / दोवि कयावि न हुज्जा, इंदिअसुक्खं च मुक्खं च // 889 // सायर ! तुज्झ न दोसो, दोसो अम्हाण पुवकम्माणं / रयणायरंमि भरिए, सालूरो हत्थ मे लग्गो // 810 // उवएसा दिज्जंति, हत्थे नच्चाविऊण अन्नेसि / जं अप्पणा न कीरइ, किमेस विकाणुओ धम्मो // 891 // इह भरहे केवि जीवा, मिच्छट्ठिी य भद्दया भावा / जे मरिऊणं नवमे, वरिसे होहिंति केवलिणो // 892 // पणयालीसं आगम-समग्गगंथाण हुँति छल्लक्खा / पणयालीससहस्सा-पंचसया चेव चउयाला // 893 // सत्तरिसयमुक्कोस, वीस जहन्नेण विहरमाणजिणा / समयखित्ते दस वा, जम्मं पइ वीसदेसगं वा // 894 // सत्तरिसयमुक्कोसं, इअरे दस समयखेत्त जिणमाणं / चोत्तीस पढमदिवे अणंतरऽद्धे य ते दुगुणा // 895 // भूए अणाइकाले, केई होहिंति गोअमा ! सूरी / जेसिं नामग्गहणे, नियमेणं होइ पच्छित्तं // 896 // सूइहिं अग्गिवन्नाहि, संभिन्नस्स निरंतरं / जावइअं गोअमा ! दुक्खं, गम्भे अट्ठगुणं तहा // 897 // गम्भाओ निप्फडंतस्स, जोणीजंतनिपीडणे / कोडिगुणं तयं दुक्खं, कोडाकोडिगुणं पि वा // 898 //
SR No.004473
Book TitlePaia Subhasiya Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyadarshanvijay
PublisherPadmavijay Ganivar Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages124
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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