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________________ एकस्स जाव न अंतं, जामि दुक्खस्स पावकम्मो है। तावञ्चिय गरुययरं, बिइयतु निरुवियं विहिणा // 184 // जं जं आलिहइ मणो, आसावट्टीहिं हिअअफलयम्मि / तं तं बालोव्व निही, निहुअं हसिऊण पम्हुसइ // 185 // ____ कम्मं / RARMAS सव्वो पुवकयाणं, कम्माणं पावए फलविवागं / अवराहेसु गुणेसु य, निमित्तमेचे परो होइ // 186 // जं जेण जया जारिसयं, उवज्जियं होइ कम्म सुहमसुहं / तं तारिसं तया से; संपज्जइ दोरियनिबद्धं // 187 // पुवकयं सुकयं चिय, जीवाण सुक्खकारणं होइ / दुकयं च कयं दुक्खाण कारण होइ निभंतं // 188 // न सुरासुरेहि नो नरवरेहि नो बुद्धिसमिद्धेहिं / कहवि खलिज्जइ इतो, सुहासुहो कम्मपरिणामो // 189 / / नो देइ कोइ कस्स वि, सुक्खं दुक्ख च निच्छयो एसो / निअय चेव समज्जिय-मुव जइ जंतुणा कम्मं // 190 / / मा वहउ को वि गवं, जकिर कज्जं मए कयं होइ / सुरवरकयंपि कज्ज, कम्मवसा होइ विवरीयं // 191 // विहडंति सुया विहडंति बांधवा विहडइ संचिओ अत्थो / एक नवरि न विहडइ, नरस्स पुवक्कयं कम्मं // 192 // . पाविज़्जइ जत्थ सुहं, पाविज्जइ मरणबंधणं जत्थ / तेण तहिं चिय निज्जइ, नियकम्मगलत्थिओ जीवो // 193 //
SR No.004473
Book TitlePaia Subhasiya Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyadarshanvijay
PublisherPadmavijay Ganivar Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages124
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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