________________ उवएसमाला (6) परिभवइ उग्गकारी, सुद्धं मग्गं निगूहए बालो। विहरइ सायागुरुओ, संजमविगलेसु खित्तेसु // 372 / / उग्गाइ गाइ हसई, असंवुडो सइ करेइ कंदप्पं / गिहिकज्जचिंतगोऽविय, ओसन्ने देइ गिण्हइ वा // 373 // धम्मकहाओ अहिज्जइ, घरा घरं भंमइ परिकहं तो अ / गणणाइ पमागेण य, अइरित्तं वहइ उवगरणं // 374 // बारस बारस तिण्णि य, काइयउच्चारकालभूमीओ। अंतो बहिं च अहियासि अगहियासे न पडिलेहे // 375 // गीयत्थं संविग्गं, आयरिअं मुअइ वलइ गच्छस्स / गुरुणो य अणापुच्छा, 5 किंचिवि देइ गिण्हइ वा // 376 // गुरुपरिभोगं मुंजइ, सिज्जासंथारउवकरणजायं / किन्तिय तुमंति भासई, अविणीओ गव्विओ लुद्धो // 377 // गुरुपञ्चक्खाणगिलाणसेहबालाउलस्स गच्छरस / न करेइ नेव पुच्छइ, निद्धम्मो लिंगमुवजीवी // 378 // पहगमण-वसहि-आहार-सुयण-थंडिल्लविहिपरिट्ठवणं / नायरइ नेव जाणइ, अजावटावगं चेव // 379 // सच्छंदगमणउट्ठाणसोअणो अप्पणेण चरणेण / समणगुणमुक्कजोगी, बहुजीवखयंकरो भमइ // 380 // वस्थिव्व वायपुण्णो, परिभमई जिणमयं अयाणंतो। थद्धो निम्विन्नागो, नय पिच्छइ कंचि अप्पसमं // 381 // सच्छंदगमणउट्ठाणसोअणो भुंजई गिहीणं च / पासत्थाइट्ठाणा, हवंति एमाइया एए // 382 //