________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे खित्ताईयं भुंजइ, कालाईयं तहेव अविदिन्नं / गिण्हइ अगुइयसूरे, असगाई अहव उवगरणं // 362 // ठवणकुले न ठवेई, पासत्थेहिं च संगयं कुणई। निश्चमवझाणरओ, न य पेहपमजणासीलो // 363 // रीयइ य दवदवाए, मूढो परिभवइ तहय रायणिए / परपरिवायं गिण्हई, निठुरभासी विगहसीलो // 364 // विज्जं मंतं जोगं, तेगिच्छं कुणइ भूइकम्मं च। अक्खरनिमित्तजीवी, आरंभपरिग्गहे रमइ // 365 // कज्जेण विणा उग्गहमगुजाणावेइ दिवसओ सुअइ / अज्जियलाभं भुंजइ, इथिनिसिज्जासु अभिरमइ // 366 // उच्चारे पासवणे, खेले सिंघाणए अणाउत्तो। संथारग उवहीणं, पडिक्कमइ वा सपाउरणो // 36 // न करेइ पहे जयणं, तलियाणं तह करेइ परिभोगं / चरइ अणुबद्धवासे, सपक्खपरपक्खओमाणे // 368 // संजोअइ अइबहुअं, इंगाल सधूमगं अणट्ठाए / भुंजइ रूवबलहा न धरेइ अ पायपुंछणयं // 369 // अट्ठम छ? चउत्थं, संवच्छर चाउमास पक्खेसु / न करेइ सायबहुलो, न य विहरइ मासकप्पेणं // 370 // नीयं गिण्हइ पिंडं, एगागी अच्छए गिहत्थकहो / पावसुआगि अहिज्जइ, अहिगारो लोगगहणम्मि // 371 // परिभवइ उग्गकारी, सुद्धं मग्गं निगृहए बालो। विरहइ सायागुरुओ, संजमविगलेसु खित्तेसु // 372 //