________________ 77 उवएसमाला (6) निहयाणि ह्याणि य इंदिआणि घाएहऽणं पयत्तेणं / अहिंयत्थे निहयाई, हियकज्जे पूयणिज्जाई // 329 // जाइकुलरूवबलसुअतवलाभिस्सरिय अट्ठमयमत्तो। एयाई चिय बंधइ, असुहाइँ बहुं च संसारे // 330 // जाईए उत्तमाए, कुले पहाणम्मि रूवमिस्सरियं / बलविज्जा य तवेण य, लाभमएणं च जो खिसे // 331 / / संसारमणवयग्गं, नीयट्ठाणाइं पावमाणो य / . भमइ अणंतं कालं, तम्हा उ मए बिवज्जिज्जा // 332 / / युग्मम / / सुटुंऽपि जई जयंतो, जाइमयाईसु मज्जई जो उ / सो मेअज्जरिसि जहा, हरिएसबलु व्व परिहाई // 333 // इत्थिपसुसंकिलिहँ, वसहिं इत्थीकहं च वजंतो। इत्थिजणसंनिसिज्जं, निरूवणं अंगुवंगाणं // 334 // पुव्वरयाणुस्सरणं, इत्थीजणविरहरूवविलवं च / अइबहुअं अइबहुसो; विवज्जयंतो अ आहारं // 335 / / वज्जंतो अ विभूसं, जइज्ज इह ब्रभचेरगुत्तीसु / साहू तिगुत्तिगुत्तो, निहुओ दंतो पसंतोअ॥३३६॥ त्रिभिर्विशेषकम / / गुज्झोरुवयणकक्खोरुअंतरे तह थणंतरे दटुं। साहरइ तओ दिटिं, न य बंधइ दिट्ठिए दिहिँ // 337 / / सज्झाएण पसत्थं, झाणं जाणइ य सव्वपरमत्थं / सज्झाए वÉतो, खंणे खणे जाइ वेरग्गं / / 338 / / उढ्डमहतिरियलोए, जोइसवेमाणिया य सिद्धी य / सब्बो लोगालोगो, सज्झायविउस्स पञ्चक्खो // 339 //