________________ 76 . मसपाआ॥३२२॥ श्रुत रत्नरत्नाकरे mm उव्वेयओ अ अरणामओ अ अरमंतिया य अरई य। कलिमलओ अ अणगग्गया य कत्तो सुविहियाण ? // 318 // सोगं संतावं अधिइ च मन्नु च वेमणस्स च / कारुन्न रुन्नभावं, न साहु धम्मम्मि इच्छति // 319 // भयसंखोहविसाओ, मग्गविभेओ विभीसियाओ अ। . परमग्गदंसगाणि य, दढधम्माणं कओ हुंति ? // 320 // कुच्छा चिलीणमलसंकडेसु उव्वेयओ अणिढेसु / चक्खुनियत्तणमसुभेसु नत्थि दव्वेसु दंताणं // 321 // एयपि नाम नाऊग, मुज्झियव्वंति नूग जीवस्स / फेडेऊण न तीरई, अइबलिओ कम्मसंघाओ // 322 // जह जह बहुस्सुओ सम्मओ अ सीसगणसंपरिखुडो अ। अविणिच्छिओ अ समए, तह तह सिद्धंतपडिणीओ // 323 / / पवराई वत्थपायासणोवगरणाइँ एस विभवो मे। अविय महाजणनेया, अहंति अह इदिडगारविओ // 324 / / अरसं विरसं लूहं जहोववन्नं च निच्छए भुत्तुं / निद्धाणि पेसलाणि य, मग्गइ रसगारवे गिद्धो // 325 // सुस्सूसई सरीरं, सयणासणवाहणापंसगपरो / सायागारवगुरुओ दुक्खस्स न देइ अप्पाणं // 326 // तवकुलछायाभंसो, पंडिच्चप्फंसणा अणिट्ठपहो। वसणाणि रणमुहाणि य, इंदियवसगा अणुहवंति // 32 // सहेसु न रंजिज्जा, रूवं दटुं पुणो न इक्खिजा।। गंधे रसे अ फासे, अमुच्छिओ उज्जमिज मुणी // 328 //