________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे जुगमित्तंतरदिट्ठी, पयं पयं चक्खुणा विसोहितो / अव्वक्खित्ताउत्तो, इरियासमिओ मुणी होई // 296 // कजे भासइ भासं, अणवजमकारणे न भासइ य / विगहविसुत्तियपरिवजिओ अ जइ भासणासमिओ // 297 // . बायालमेसणाओ, भोयणदोसे य पंच सोहेइ / सो एसणाइसमिओ, आजीवी अन्नहा होइ // 298 / / पुचि चक्खु परिक्खिय, पमजिउं जो ठवेइ गिण्हइ वा / आयाणभंडनिक्खवणाइ समिओ मुणी होइ // 299 / / उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणए य पाणविही / सुविवेइए पएसे, निसिरंतो होइ तस्समिओ // 30 // कोहो माणो माया, लोभो हासो रई य अरई य / सोगो भयं दुगुंछा, पञ्चक्खकली इमे सव्वे // 301 // कोहो कलहो खारो, अवरुष्परमच्छरों अणुसओ अ / चंडत्तणमणुवसमो, तामसभावो अ संतावो // 302 // निच्छोडण निब्भंछण निराणुवत्तित्तणं असंवासो। कयनासो अ असम्म, बंधइ घणचिक्कणं कम्मं // 303 // युग्मम् // माणो मयऽहंकारो, परपरिवाओ अ अत्तउक्करिसो। परपरिभवोऽवि य तहा, परस्स निंदा असूआ य // 304 // हीला निरुवयारित्तणं निरवणामया अविणओ अ। परगुणपच्छायगया, जीवं पाडंति संसारे // 30 // युग्मम् // माया कुडंग पच्छन्नपावया कूड कवड वंचणया। सव्वत्थ असब्भावो, परनिक्खेवावहारो अ // 306 // .