________________ 73 उवएसमाला (6) देवाऽवि देवलोए, दिव्वाभरणाणुरंजियसरीरा / जं परिवडंति तत्तो, तं दुक्खं दारुणं तेसिं // 285 / / तं सुरविमाणविभवं, चिंतिय चवगं च देवलोगाओ / अइबलियं चिय जं नवि, फुट्टइ सयसकर हिहयं // 286 // ईसा-विसाय-मय-कोह-माया-लोभेहिं एवमाईहिं / देवाऽवि समभिभूया, तेसि कत्तो सुहं नाम ? // 287 / / धम्मपि नाम नाऊण, कीस पुरिसा सहति पुरिसाणं ? / सामित्त साहीगे, को नाम करिज दासत्तं ? // 288 / / संसारचारए चारए व्व आवीलियस्स बंधेहिं / उव्विग्गो जस्स मगो, सो किर आसन्नसिद्धिपहो // 289 // आसन्नकालभवसिद्धियस्स जीवस्स लक्खगं इणमो / विसयसुहेसु न रज्जइ, सव्वत्थामेसु उज्जमइ // 290 // हुन्ज व न व देहबलं, धिइमइसत्तेण जइ न उजमसि / अच्छिहिसि चिरं कालं, बलं च कालं च सोअंतो // 291 // लद्धिल्लियं च बोहिं, अकरितोऽणागयं च पत्थितो / अन्नं दाई बोहिं, लब्भिसि कयरेग मुल्लेण ? // 292 // संघयण-काल-बल-दूसमारुयालंबणाई चित्तूणं / सव्वं चिय नियमधुरं, निरुज्जमाओ पमुञ्चति // 293 // कालस्स य परिहाणी, संजमजोगाई नस्थि खित्ताई। जयणाइ वट्टियव्वं नहु जयणा भंजए अंगं // 294 // समिई-कसाय-गारव-इंदिय-मयबंभचेरगुत्तीसु / सज्झायविणयतवसत्तिओ अ जयगा सुणिहियाणं // 295 / /