________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे वंदइ उभओ कालंपि चेइयाइं थईथुई परमा। .... जिणवरपडिमाघरधूवपुप्फगंधच्चणुज्जुत्तो // 230 // सुविणिच्छियएगमई, धम्मम्मि अनन्नदेवओ अ पुणो / न य कुसमए स रज्जइ, पुव्वावरबाहियत्थेसु // 231 // दह्ण कुलिंगीणं, तसथावरभूयमदणं विविहं / धम्माओ न चालिजइ, देवेहिं सइंदुएहिपि // 232 // वंदइ पडिपुच्छइ पज्जुवासई साहुणो सययमेव / पढइ सुणइ गुणेइ अ, जणस्स धम्म परिकहेइ. // 233 // दढसीलव्वयनियमो, पोसहआवस्सएसु अक्खलिओ। महुमज्जमंसपंचविहबहुबीयफलेसु पडिकंतो // 234 // नाहम्मकम्मजीवी, पञ्चक्खागे अभिक्खमुज्जुत्तो। सव्वं परिमाणकडं, अवरज्झइ तंपि संकेतो // 235 // निक्खमण-नाण-निव्वाण-जम्मभूमीउ वंदइ जिणाणं / न य वसइ साहुजणविरहियम्मि देसे बहुगुणेऽवि // 236 // परतित्थियाण पणमण, उब्भावण थुगण भत्तिरागं च / सकारं सम्माणं, दाणं विणयं च वजेइ // 237 // पढभं जईण दाऊण, अप्पणा पणमिऊण पारेइ / असई अ सुविहिआणं, भुंजई कयदिसालोओ // 238 // साहूण कप्पणिजं, जं नवि दिन्नं कहिंपि किंचि तहिं / धीरा जहुत्तकारी, सुसावगा तं न भुजंति // 239 // वसही-सयणासण-भत्त-पाणभेसज्जवत्थपत्ताई। .. जइऽवि न पज्जत्तधणो थोवाऽविहु थोवयं देई // 240 //