________________ उवएसमाला (6) सदहणायरणाए; निच्चं उज्जुत्त एसणाइ ठिओ। तस्स भवोअहितरणं, पव्वज्जाए य स म्मं तु // 219 // जे घरसरणसत्ता, छक्कायरिऊ सकिंचणा अजया / नवरं मुत्तूण घरं, घरसंकमणं कयं तेहिं // 220 // उस्सुत्तमायरंतो, बंधइ कम्मं सुचिक्कणं जीवो। संसारं च पवट्टइ, मायामोसं च कुव्वइ य // 221 / / जइ गिण्हइ वयलोवो, अहव न गिण्हइ सरीरबुच्छेओ / पासत्थसंगमोऽविय, वयलोवो तो वरमसंगो // 222 // आलावो संवासो, वीसंभो संथवो पसंगो अ। हीणायारेहिं समं, सवजिणिदेहिं पडिकुट्ठो // 223 // अन्नुन्नजंपिएहिं हसिउद्धसिएहिं खिप्पमाणो अ / पासत्थमज्झयारे, बलाऽवि जइ वाउलीहोइ / / 224 / / लोएऽवि कुसंसग्गीपियं जणं दुन्नियच्छमइवसणं / निंदइ निरुज्जमं पियकुसीलजणमेव साहुजणो // 225 / / निच्च संकिय भीओ गम्मो सव्वस्स खंलियचारित्तो / साहुजणस्स अवमओ, मओऽवि पुण दुग्गई जाइ // 226 // गिरिसुअपुप्फसुआणं, सुविहिय ! आहरणकारणविहन्नु / वज्जेज्ज सीलविगले उज्जुयसीले हविज्ज जई // 227 // ओसन्नचरणकरण, जइणो वंदंति कारणं पप्प / जे सुविइयपरमत्था, ते बंदंते निवारंति // 228 // सुविहिय वंदावंतो, नासेई अप्पयं तु सुपहाओ। दुविहपहविप्पमुक्को, कहमप्प न याणई मूढो // 229 //