________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे सम्मदिट्ठीवि कयागमोवि अइविसयरागसुहवसओ। भवसंकडम्मि पविसइ, इत्थं तुह सञ्चई नायं // 164 // सुतवस्सियाण पूया, पणाम-सकार-विणयकजपरो। बद्धपि कम्ममसुहं, सिढिलेइ दसारनेया व // 165 // अभिगमण-वंदण-नमंसणेण पडिपुच्छणेण साहूणं / / चिरसंचियंऽपि कम्मं, खगेण विरलत्तणमुवेइ // 166 // केइ सुसीला सुहम्माइ सजणा गुरुस्सऽवि सुसीसा / विउलं जणंति स, जह सीसो चंडरुद्दस्स // 16 // अंगारजीववहगो, कोई कुगुरू सुसीसपरिवारो। सुमिणे जईहि दिट्ठो, कोलो गयकलहपरिकिण्णो // 16 // सो उग्गभवसमुद्दे, सयंवरमुवागएहि राएहिं / , करहोवक्खरभरिओ, दिट्ठो पोराणसीसेहिं // 169 // संसारवंचना नवि, गणंति संसारसूअरा जीवा / सुमिणगएणऽवि केई, बुझंति पुप्फचूला वा // 170 // जो अविकलं तवं संजमं च साहू करिज पच्छाऽवि। अनियसुयव्व सो नियगमट्ठमचिरेणं साहेइ // 171 // सुहिओ न चयइ भोए, चयइ जहा दुक्खिओत्ति अलियमिणं / चिक्कणकम्मोलित्तो न इमो न इमो परिचयई // 172 / / जह चयइ चक्कवट्टी, पवित्थरं तत्तियं मुहुत्तेणं / न चयइ तहा अहन्नो, दुब्बुद्धी खप्परं दमओ // 173 // देहो पिवीलियाहिं, चिलाइपुत्तस्स चालणी व्व कओ। तनुओवि मणपओसो, न चालिओ तेण ताणुवरि // 174 / /