________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे धम्ममिणं जाणंता, गिहिणोऽवि दढव्वया किमुअ साहू ? / कमलामेलाहरणे, सागरचंदेण इत्थुवमा // 120 // देवेहि कामदेवो, गिहीवि नवि चालिओ (चाइओ) तवगुणेहिं / मत्तगयंद-भुयंगम-रक्खसघोरट्टहासेहिं // 121 // भोगे अभुंजमाणावि केइ मोहा पडंति अहरगई। कुविओ आहारथी, जत्ताइ जणस्स दमगुव्व // 122 // भवसयसहस्सदुलहे, जाइजरामरणसागरुत्तारे,। जिणवयणम्मि गुणायर ! खणमवि मा काहिसि पमायं // 123 // जं न लहइ सम्मत्तं, लधूवि जं न एइ संवेगं / विसयसुहेसु य रजइ, सो दोसो रागदोसाणं // 124 // तो बहुगुणनासागं, सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं / न हु वसमागंतव्वं, रागद्दोसाण पावाणं // 125 // नवि तं कुणइ अमित्तो, सुंछवि सुविराहिओ समत्थोऽवि / जं दोऽवि अणिग्गहिया, करंति रागो अ दोसो अ॥१२६॥ इहलोए आयासं अजसं च करेंति गुणविणासं च। . पसवंति अ परलोए, सारीरमणोगए दुक्खे // 127 // धिद्धी अहो अकजं, जं जाणंतोऽवि रागदोसेहिं / फलमउलं कडुअरसं, तं चेव निसेवए जीवो // 128 // को दुक्खं पाविजा ? कस्स व सुक्खेहिं विम्हओ हुज्जा ? / . को व न लभिज मुक्खं ? रागद्दोसा जइ न हुज्जा // 129 // माणी गुरुपडिणीओ, अणत्थभरिओ अमग्गचारी य / . मोहं किलेसजालं, सो खाइ जहेव गोसालो // 130 //