________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे रूसइ चोइज्जतो, वहई हियएण अणुसयं भणिओ। न य कम्हि करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो // 6 // उव्विल्लणसूअणपरिभवेहिं अइभणियदुट्ठभणिएहिं / सत्ताहिया सुविहिया, न चेव भिदंति मुहरागं // 7 // माणसिणोवि अवमाणवंचणा ते परस्स न करंति / सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू उअहिव्व गंभीरा // 8 // मउआ निहुअसहावा, हासदवविवज्जिया विगहमुक्का / असमंजसमइबहुअं, न भणंति अपुच्छिआ साहू // 79 // महुरं निउणं थोवं, कज्जावडिअं अगव्वियमतुच्छं। . पुट्वि महसंकलियं, भणंति जं धम्मसंजुत्तं // 8 // सहि वाससहस्सा, तिसत्तखुत्तोदयेण धोएण। , अणुचिण्णं तामलिणा, अन्नाणतवुत्ति अप्पफलो // 81 // छज्जीवकायवहगा, हिंसकसत्था. उवइसंति पुणो। सुबहुंपि तवकिलेसो, बालतवस्सीण अप्पफलो // 82 // परियच्छंति अ सव्वं, जहठ्ठियं अवितहं असंदिद्धं / तो जिणवयणविहिन्नू सहति बहुअरस बहुआई // 83 // जो जस्स वट्टइ हियए सो तं ठावेइ सुंदरसहावं / वग्घी छावं जणणी, भदं सोमं च मन्नेइ // 84 // मणि-कणग-रयण-धणपूरियम्मि भवणम्मि सालिभद्दोऽपि / अन्नो किर मज्झवि सामिओत्ति जाओ विगयकामो // 85 // न करंति जे तवसंजमं च तुल्लपाणिपायाणं / पुरिसा समपुरिसाणं, अवस्स पेसत्तणमुर्विति // 86 //