________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे 48 पडिरूवो तेयस्सी, जुगप्पहाणागमो महुरवको। गंभीरो धीमंतो, उवएसपरो अ आयरिओ // 10 // अपरिस्सावी सोमो, संगहसीलो अभिग्गहमई य / अविकत्थणो अचवलो, पसंतहियओ गुरू होई // 11 // कइयावि जिणवरिंदा, पत्ता अयरामरं पहं दाउं / आयरिएहिं पवयणं, धारिजइ संपयं सयलं // 12 // अणुगम्मए भगवई, रायसुअजासहस्सविंदेहिं / तहवि न करेइ माणं, परियच्छइ तं तहा नूगं // 13 // दिणदिक्खिअस्स दमगरस, अभिमुहा अजचंदणा अज्जा / नेच्छ आसणगहणं सो विणओ सव्वअजाणं // 14 // वरिससयदिक्खिआए, अन्जाए अञ्जदिक्खिओ साहू / अभिगमण-बंदण-नमंसणेण विणएण सो पुज्जो // 15 // धम्मो पुरिसप्पभवो, पुरिसवरदेसिओ, पुरिसजिट्ठो / लोएवि पहू पुरिसो, किं पुण लोगुत्तमे धम्मे ? // 16 // संवाहणस्स रण्णो, तइया वाणारसीऍ नयरीए / कन्नासहस्समहिअं आसी किर रूववंतीणं // 15 // तहवि य सा रायसिरी, उल्लुटुंती न ताइया ताहिं / उयरहिएण इक्केण, ताइया अंगवीरेण // 18 // महिलाण सुबहुआणवि, मझाओ इह समत्तघरसारो। रायपुरिसेहिं निजइ, जणेऽवि पुरिसो जहिं नस्थि // 19 // किं परजणबहुजाणावणाहिं वरमप्पसक्खियं सुकयं / इह भरहचकवट्टी, पसन्नचंदो य दिटुंता // 20 //