________________ श्रुत रत्नरश्माकरे जम्म-जरा-मरणजलो अणाइमं वसण-सावयाइन्नो / . . जीवाण दुक्खहेऊ कटं रुद्दो भक्समुद्दो // 164 / / धन्नोऽहं जेण मए अणोरपारंमि भवसमुद्दम्मि / भवसय-सहस्सदुलहं लद्धं सद्धम्मजाणमिणं // 165 / / एअस्स पभावेणं पालिज्जतस्स सइ पयत्तेणं / जम्मंतरेऽपि जीवा पावंति न दुक्खदोगच्चं // 166 / / चिंतामणी अउव्वो एअमपुवो अं कप्परुक्खुत्ति / एअं परमो मंतो एअं परमामय-सरिच्छं // 167 // अह मणमंदिर-सुंदरफुरंत-जिणगुणनिरंजणुजोओ / पंचनमुक्कारसमे पाणे पणओ क्सिजेइ // 168 // परिणाम-विसुद्धीए सोहम्मे सुरवरो महिड्ढीओ। आराहिऊण जायइ भत्तपरिनं जहन्नं सो // 169 // उक्कोसेण निहत्थो अच्चुअकप्पंमि आयए अमरो / निव्वाणसुहं पावइ साहू सव्वट्ठसिद्धि वा // 10 // इअ जोइसर-जिणवीरभद्द-मणिआणुसारिणीमिणमो। भत्तपरिन्नं धन्ना पढंति निसुणेति भावेति // 171 // सत्तरिसयं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नतं / आराहतो विहिणा सासयसुक्खं लहइ मुक्खं // 172 // // इइ भत्तपरिण्णा-पयन्नो संमत्तो॥ TRIOR