________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे 30 न लहइ जहा लिहंतो मुहिल्लिअं अट्ठिअं रसं सुणओ। सो तइ तालुअ-रसि विलिहंतो मन्नए सुक्खं // 142 // महिला-पसंगसेवी न लहइ किंचिवि सुहं तहा पुरिसो। सो मन्नए बराओ सयकाय-परिस्समं सुक्खं // 14 // सुठुवि मग्गिजंतो कत्थवि केलीइ नत्थि जह सारो। इंदिअ-विसएसु तहा नत्थि सुहं सुछवि गविट्ठ // 144 // सोएण पवसिअपिआ चक्खूराएम माहुरो वणिओ / घाणेण रायपुत्तो निहओ जीहाइ सोदासो // 14 // फासिदिएण दुट्ठो नट्ठो सोमालिआ महीपालो। इक्किक्केणवि निहया किं पुण जे पंचसु पसत्ता ? // 146 // विसयाविक्खो निवडइ निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं / देवी-देवसमागय-भाउयजुअलं व भणिअं च // 14 // लिआ अवयक्खता निरावयक्खा गया अविग्घेणं / तम्हा पवयणसारे निरावयवखेण होअव्वं // 14 // विसए अवियक्खंता पडंति संसारसायरे घोरे। . विसएसु निराविक्खा तरंति संसारकंतारं // 149 // ता धीर ! धीबलेणं दुईते दमसु इंदिअमइंदे / तेणुक्खयपडिववखो हराहि आराहणपडागं // 15 // कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं / निन्गिण्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिलो पयत्तणं // 151 // जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तमं तिलोईए। .. तंजाण कसायाणं वुद्डिक्खय-हेटअं सव्वं // 152 // .