________________ 29 भत्तपरिणाप्रयन्नो (3) mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm अभितरबाहिरए सच्चे संगे (गंथे) तुमं विवज्जेहि / कय-कारिअणुमईहिं काय-मणोवाय-जोगेहिं / / 131 / / संगनिमित्तं मारइ भणइ अलीअं करेइ चोरिकं / सेवइ मेहुण मुच्छं अप्परिमाणं कुणइ जीवो // 132 // संगो महाभयं जं विहेडिओ सावएण संतेणं / पुत्तेण हिए अत्थंमि मुणिवई कुंचिएण जहा // 133 / / सव्वग्गंथ-विमुक्को सीईभूओ पसंतचित्तो अ। जं पावइ मुत्तिसुहं न चकवट्टीवि तं लहइ.॥१३४॥ निरसल्लस्सेह महव्वयाइं अक्खंड-निव्वणगुणाई / उवहम्मति अ ताइं नियाणसल्लेण मुणिणोऽवि // 135 // अह रागदोसगब्भं मोहग्गभं च तं भवे तिविहं / धम्मत्थं हीणकुलाइ-पत्थणं मोहगभं च // 136 // रागेण गंगदत्तो दोसेणं विरसभूइमाईआ। मोहेण चंडपिंगल-माईआ हुँति दिटुंता // 13 // णिअ जो मुक्खसुहं कुणइ निआणं असारसुहहेउं / सो कायमणिकएणं वेरुल्लिअमणि पणासेइ // 138 // दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च. बोहिलाभो अ। एअं पत्थेअव्वं न पत्थणिज तओ अन्नं // 139 // उझिअनिआणसल्लो निसिभत्त-निअत्तिसमिइगुत्तीहिं। पंचमहव्वय-रक्खं कयसिक्सुक्खं पसाहेइ // 14 // इंदिअ-विसय-पसत्ता पडंति संसारसायरे. जीवा / पक्खिव्व छिन्नपक्खा सुसीलगुण-पेहुण्मविहूणा // 141 //