________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे 24. wwwwwwwww wimmmmmmmmmmmmmm आराहणापुरस्सरमणन्नहियओ विसुद्धलेसाओ। संसारक्खयकरणं तं मा मुंची नमुक्कारं // 76 // . अरिहंतनमुक्कारोऽवि हविज जो मरणकाले। सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुच्छेअणसमत्थो / / 77 / / मिठो किलिट्ठकम्मो नमो जिणाणतिसुकयपणिहाणो। कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरुत्ति सूलिहओ // 7 // भावनमुक्कारविवज्जिआई जीवेण अकयकरणाई। गहियाणि अ मुक्काणि अ अगंतसो दव्वलिंगाई // 79 // आराहणापडागागहणे हत्थो भवे नमोकारो। तह सुगइमग्गगमणे रहुव्व जीवस्स अप्पडिहओ // 8 // अन्नाणीऽवि अ गोवो आराहित्ता मओ नमुक्कार / चंपाए सिट्ठिसुओ सुंदसणो विस्सुओ जाओ // 81 // विजा जहा पिसायं सुठुवउत्ता करेइ पुरिसवसं / नाणं हिअयपिसायं सुठुवउत्तं तह करेइ // 82 // उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा पउत्तेणं / तह हिययकिण्हसप्पो सुठुवउत्तेण नाणेणं // 83 // जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अच्छिउं न सकेइ / तह खणमवि मज्झत्थो विसएहिं विणा न होइ मणो // 84 // तम्हा स उट्ठिउमणो मणमक्कडओ जिणोवएसेणं / काउं सुत्तनिबद्धो रामेअव्वो सुहज्झाणे // 85 // सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरंमि पडिआवि / जीवोऽवि तह ससुत्तो न नस्सइ गओवि संसारे // 86 //